संत कबीर जी ने हिंदी साहित्य में ऐसा योगदान दिया हैं जो कोई आज के समय में दे नहीं सकता उनके द्वारा लिखी गयी कृतियाँ Kabir Ke Dohe के नाम से प्रसिद्ध हैं खास कर जब उनके कहे दोहों की बात आती हैं Sant Kabir Ke Dohe दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं कबीर जी ने अपने जीवन काल में बहुत सारी चीजे अनुभव किये और उन्हें दोहे के माध्यम से कहा है।
संत कबीर दास जी के बारे में लोग अक्सर बहुत साड़ी बाते करते थे कि वो कबीर जी हिन्दू थे या मुस्लिम कबीर दास जी एक बुनकर थे। वे अधिकतर समय कपड़ा बुनने का ही काम करते थे। वे अद्भुत संत थे और वे अत्यंत गहन अनुभव रखने वाले व्यक्ति थे।
लोग इस बात में ही उलझे रह गये कि संत कबीर हिन्दु थे या मुस्लिम परन्तु कबीर जी अपने आपे में रहते जो देखते और वही लिखते थे !
आज हम इस पोस्ट के मध्यम से आपके सामने Kabir Ke Dohe ( कबीर के दोहे ) रखेंगे जिनको आप पढ़ सकते हैं यह दोहे आपके लिए हमने व्याख्या सहित दिए हैं उम्मीद हैं आपको अच्छे लगेंगे !
Kabir Ke Dohe In Hindi | कबीर के दोहे
अर्थ – कबीर जी कहते है, अगर कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में मोती की माला लेकर घुमाता रहे, उससे उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की दुविधा का हल नहीं मिलता। अगर वह एक बार मन की माला का जाप करे तो उसके सारे दुविधा अपने आप ही सामप्त हो जायेगी। Kabir Ke Dohe in Hindi
अर्थ – अगर मैं कहूं कि राम भारी हैं, तो इससे मन में भय पैदा होता है। अगर मैं कहूं कि वह हल्का है, यह बेतुका है। मैं राम को नहीं जानता क्योंकि मैंने उन्हें देखा नहीं था।
अर्थ – एक बच्चा अपने पिता को बहुत पसंद करता है। वह अपने पिता का अनुसरण करता है और उसे पकड़ लेता है। पिता उसे कुछ मिठाई देते हैं। बच्चा मिठाई का आनंद लेता है और पिता को भूल जाता है। हमें ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए जब हम उसके एहसानों का आनंद लेते हैं।
अर्थ – मैं उसे खोज रहा था। मैं उनसे आमने-सामने मिला। वह शुद्ध है और मैं गंदा हूं। मैं उसके चरणों में कैसे झुक सकता हूं? Kabir Das ke dohe
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।
साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए । मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय । जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।
अर्थ – कबीर इस संसार रूपी बाजार में अपने जीवन से बस यही चाहते हैं, कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं है तो दुश्मनी भी न हो। मतलब बिना भेद भाव के सबके साथ सामान व्यवहार हो।
अर्थ – यह मानव शरीर नश्वर है। अंत समय में यह लकड़ी की तरह जलती है और उसके केश (बाल) घास की तरह जल उठते हैं। और इस तरह सम्पूर्ण शरीर को जलता देख, उसके अंत को देखकर, कबीर का मन उदासी से भर जाता है।
अर्थ – कबीर दास जी कहते प्रकृति का यही नियम है कि जो उदय हुआ है, वह कल अस्त भी होगा। जो फूल आज खिला हुआ है वह कल मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है सो जाएगा।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि अरे जीव, तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है। देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि । दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ॥
एकही बार परखिये, ना वा बारम्बार । बालू तो हू किरकिरी, जो छानै सौ बार॥
हू तन तो सब बन भया, करम भए कुहांडि । आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि॥
अर्थ – जब मैं दूसरे किनारे पर पहुंचूंगा तो मैं इसके बारे में बात करूंगा। मैं अभी सागर के बीच में नौकायन कर रहा हूं। मरने का मरने के बाद देखना चाहिए, अभी जीवन जीने पे ध्यान देना चाहिए.
अर्थ – मेरा कुछ भी नहीं है मेरे पास जो कुछ भी है वह ईश्वर का है। अगर मैं उसे दे दूं जो उसका है, तो मुझे कुछ महान करने का कोई श्रेय नहीं है।अर्थ – जब तक भक्ति सशर्त होती है तब तक उसे कोई फल नहीं मिलता। लगाव वाले लोगों को कुछ ऐसा कैसे मिल सकता है जो हमेशा अलग हो?अर्थ – इस कलयुग में, लोग कई दोस्त बनाते हैं। जो लोग अपने मन को भगवान को अर्पित करते हैं वे बिना किसी चिंता के सो सकते हैं।अर्थ – वासना का आदमी अमृत की तरह नहीं जीता। वह हमेशा जहर खोजता है। भले ही भगवान शिव स्वयं मूर्ख को उपदेश देते हों, मूर्ख अपनी मूर्खता से बाज नहीं आता।सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज । सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।अर्थ – अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।